बॉलीवुड कभी ‘ब्राह्मणवादी सौंदर्यशास्त्र’ से बाहर नहीं निकल पाया

बॉलीवुड कभी ‘ब्राह्मणवादी सौंदर्यशास्त्र’ से बाहर नहीं निकल पाया

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और निर्देशक अमोल पालेकर 12 सालों के लंबे अंतराल के बाद फिल्म ‘200-हल्ला हो’ के जरिए फिल्मों में वापसी की है। अमोल पालेकर का मानना ​​है कि हिंदी सिनेमा में जाति को एक मुद्दे के रूप में शायद ही कभी उठाया जाता है, क्योंकि यह पारंपरिक रूप से मनोरंजक मुद्दा नहीं है।

उनकी फिल्म ‘200-हल्ला हो’ दलित महिलाओं की सच्ची कहानी से प्रेरित है, जिसने एक बलात्कारी पर खुली अदालत में हमला किया था। फिल्म का निर्देशन सार्थक दासगुप्ता ने किया है। वहीं, दासगुप्ता और गौरव शर्मा ने मिलकर इसकी कहानी लिखी है।

यह फिल्म दलित महिलाओं के नजरिए से यौन हिंसा, जाति उत्पीड़न, भ्रष्टाचार और कानूनी खामियों के मुद्दों को छूती हुई नजर आएगी। 1970 के दशक में अपने विशेष अभिनय कला से लोगों का मनोरंजक करने वाले पालेकर ने कहा कि निर्माता आमतौर पर ऐसे ‘परेशान करने वाले’ विषयों से कतराते हैं।

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एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा, “इस फिल्म की कहानी में जाति के मुद्दों को उठाया गया है, जो भारतीय सिनेमा में अदृश्य रहे हैं। इस तरह के विषय परेशान करने वाले होते हैं और परंपरागत रूप से ‘मनोरंजक’ नहीं होते हैं। निर्माता अपनी सिनेमाई यात्रा के दौरान इस तरह की फिल्मों को बनाने से कतराते हैं।”

हालांकि, उन्होंने माना कि मराठी और तमिल सिनेमा ने जातिगत मुद्दों को बखूबी उठा है। उन्होंने कहा कि नागराज मंजुले की ‘फंदरी’ और ‘सैराट’ और पा रंजीत की ‘काला’ और ‘सरपट्टा परंबरई’ जैसी फिल्मों में दलित विमर्श को दिखाया गया है।

इसके इलावा नीरज घेवान की ‘मसान’ और ‘गीली पुच्ची’ को छोड़कर, हिंदी मुख्यधारा के सिनेमा में जाति का मुद्दा काफी हद तक अदृश्य रहा है। हालांकि, नेटफ्लिक्स पर आई फिल्म ‘अजीब दास्तां’ में इसे दिखाया गया है। अमोल पालेकर ने इंटरव्यू के दौरान कहा कि हिंदी तक ‘ब्राह्मणवादी सौंदर्यशास्त्र’ से बाहर नहीं निकल पाया।

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उन्होंने कहा, “हिंदी सिनेमा अभी भी जाति के मुद्दों पर एक विशिष्ट चुप्पी बनाए रखना पसंद करता है। हमारा फिल्म उद्योग ‘ब्राह्मणवादी सौंदर्यशास्त्र’ से बाहर आने से इनकार करता है। एक प्रेम कहानी के माध्यम से जाति विभाजन के विषयों को पेश किया जाता था। हालांकि, उत्पीड़न दिखाया जाता था, लेकिन उसका अंत बहुसंख्यकों को खुश करने वाला होता था।”

फिल्म अभिनेता ने आगे कहा, “औरतों की कहानी सब-टेक्सट (मूल कहानी के पीछे रखा जाता था) का हिस्सा हुआ करती थीं। ओटीटी प्लेटफॉर्म के आगमन के साथ महिला केंद्रित विषयों को देखा जा रहा है। महिला पात्रों को सार्थक और प्रमुख भूमिकाएं मिल रही हैं। यह सब एक सुखद बदलाव है।”

आमिर खान की फिल्म ‘लगान’, तापसी पन्नू की ‘पिंक’ और ‘थप्पड़’ जैसी फिल्मों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा है कि एक माध्यम के रूप में सिनेमा में लोगों के दिल को छूने की ‘अद्भुत शक्ति’ है।

बॉलीवुड कभी ‘ब्राह्मणवादी सौंदर्यशास्त्र’ से बाहर नहीं निकल पाया

पालेकर ने कहा, “हमने देखा कि कैसे ‘लगान’ को सभी का प्यार मिला, हमने देखा कि कैसे ‘पिंक’ या ‘थप्पड़’ ने मिसॉजिनी (स्री जाति से द्वेष) को दर्शाया। इस तरह की फिल्मों ने मुद्दों को संबोधित किया, जिससे हम सभी को अपने पाखंड का सामना करना पड़ा।”

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उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने एक निर्देशक के रूप में अक्सर मजबूत महिला पात्रों वाली फिल्में बनाई हैं, जिन्होंने पितृसत्ता के पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती दी है। लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के विध्वंसक मुद्दों पर और फिल्में बनाने की जरूरत है। फिल्म ‘200-हल्ला हो’ से वापसी कर रहे अभिनेता ने कहा कि बड़े पर्दे से उनकी अनुपस्थिति का मुख्य कारण चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं की कमी है।

पालेकर ने कहा, “एक अभिनेता के रूप में मैं एक धूमकेतु की तरह हूं, जो एक दशक में एक बार सतह पर आता है। फिल्म के विषय के संदर्भ में पुराने अभिनेताओं को दी जाने वाली अधिकांश भूमिकाएं महत्वहीन होती हैं। मैंने हमेशा भूमिकाएं तभी स्वीकार कीं, जब उन्होंने मुझे एक अभिनेता के रूप में चुनौती दी हो या ये फिल्म में महत्वपूर्व योगदान देती हैं।”

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने आगे कहा, “सिर्फ पैसा कमाने के लिए अभिनय करना कभी भी मेरा लक्ष्य कभी नहीं रहा। किसी के बाप या दादा का फालतू का रोल निभाने में क्या मजा है, मैं जरूरत से ज्यादा दिखने (Overexposed) की बजाय छिपना पसंद करता हूं।” अमोल पालेकर की आखिरी फिल्म साल 2009 में आई थी जो मराठी भाषा में थी। वह पैरेलल फिल्म थी, जिसका उन्होंने निर्देशन भी किया था।

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‘200-हल्ला हो’ में पालेकर के अलावा ‘सैराट’ फेम अभिनेत्री रिंकू राजगुरु, ‘असुर’ वेब सीरिज में काम करने वाले एक्टर बरुण सोबती, ‘जोगवा’ फेम अभिनेता उपेंद्र लिमये, ‘अभय’ फिल्म में काम करने वाले इंद्रनील सेनगुप्ता, फिल्म ‘सोनी’ में नजर आने वाली सलोनी बत्रा भी मुख्य भूमिकाओं में हैं।

लोकप्रिय यूट्यूबर साहिल खट्टर फिल्म में बलात्कार के आरोपी की भूमिका निभा रहे हैं। यह फिल्म 2004 में 200 दलित महिलाओं द्वारा गैंगस्टर और बलात्कारी भरत कालीचरण उर्फ अक्कू यादव की हत्या के बाद की घटना पर आधारित है। फिल्म स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ‘जी5’ पर रिलीज हुई है।


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