केंद्र सरकार की ओर से लाए गए कृषि कानून के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। किसानों दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर पिछले छह महीने से अधिक समय से डटे हुए हैं। किसान नेता और हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन संघ के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी (60) के साथ रविवार को हजारों अन्नदाता हरियाणा से दिल्ली की ओर प्रदर्शन करते हुए कूच किया।
Haryana | Farmer leader Gurnam Singh Chaduni and thousands of protesting farmers are moving towards Delhi. #FarmersProtest pic.twitter.com/1t9OJg1Fm9
— NDTV (@ndtv) June 6, 2021
किसान अपने काफिले से साथ सड़कों पर एसयूवी कारें, वैन, जीप और मोटरसाइकिलों पर सवार होकर निकले। सभी गाड़ियों पर किसान अपने झंडे और पोस्टर-बैनर के साथ सवार थे। वे इस दौरान नारेबाजी भी कर रहे थे। इसी बीच बीकेयू के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ट्वीट कर कहा, “भारत सरकार को इन काले कानूनों को वापस लेना ही होगा।”
भारत सरकार को इन काले कानूनों को वापस लेना ही होगा।
— Rakesh Tikait (@RakeshTikaitBKU) June 6, 2021
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उधर, दिल्ली की सीमाओं पर धरनारत किसानों ने कोरोना के कम रहे मामलों के बाद राहत की सांस ली है। कोरोना मामलों के बढ़ने के चलते प्रदर्शन स्थलों पर किसानों की संख्या कम होती जा रही थी। हालांकि, अन्नदाताओं का दावा है कि संक्रमण का असर सिंघू, टीकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर लगभग न के बराबर था।
जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने किसानों की कम संख्या को लेकर कहा कि लोगों की संख्या कम नहीं थी, बल्कि हमने खुद प्रशासन के आग्रह पर लोगों की तादाद को आंदोलन स्थल पर कम रखा था। समाचार एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए उन्होंने कहा, “दिल्ली की सीमाओं पर अभी करीब 60-70 हजार लोग बैठे हैं। एक दो-दिन में इनकी संख्या एक लाख हो जाएगी, मगर हम इससे ज्यादा लोग नहीं आने देंगे।”
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जब संधू से महामारी की जबरदस्त लहर के बावजूद तीनों आंदोलन स्थलों से संक्रमण के मामले नहीं आने को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, “कोरोना वायरस का कोई मामला होगा तो हम क्यों नहीं बताएंगे? हम जीवन देने के लिए लड़ रहे हैं…जीवन खोने के लिए थोड़ी लड़ रहे हैं।”
उन्होंने आगे दावा किया, “सिंघू बॉर्डर पर दो मौत कोरोना वायरस से बताई गई थीं लेकिन वे कोरोना से नहीं हुई थीं। एक व्यक्ति की मौत शुगर बढ़ने से और दूसरे की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।” उल्लेखनीय है कि 26 मई को किसान आंदोलन के छह महीने पूरे होने पर किसानों ने ‘ब्लैक डे’ मनाया था।
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