फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों को बड़ा झटका, माक्रों की पार्टी का भी सूपड़ा साफ

फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों को बड़ा झटका, माक्रों की पार्टी का भी सूपड़ा साफ

फ्रांस में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले चौकाने वाला रुझान सामने आया है। फ्रांस के क्षेत्रीय चुनाव में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टियों को झटका लगा है। राष्ट्रपति चुनावों से पहले देश की जनता की ओर से आए ये रुझान काफी मायने रखते हैं। माना जा रहा है कि अति दक्षिणपंथियों की हार और उदार दक्षिणपंथियों की जीत होने वाले नए राष्ट्रपति के लिए रास्ता तय कर सकते हैं।

ताजा चुनावी नजीते फ्रांस में कट्टर दक्षिणपंथी पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। रविवार को हुए क्षेत्रीय चुनावों में मरीन ला पेन की पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली है। ला पेन की पार्टी का अगले साल देश में राष्ट्रपति चुनावों से पहले सूपड़ा साफ हो जाना उनके भविष्य पर बड़े सवाल खड़े करता है।

एग्जिट पोल में रविवार को हुए चुनावों के बाद आए रीअसेंबलमेंट नेशनल पार्टी को देश के दक्षिणी प्रोवेन्स आल्प्स कोट डे अजुर (PACA) से बड़ी उम्मीदें थीं। मरीन ला पेन की पार्टी उम्मीद कर रही थी कि इस राज्य में अपना क्षेत्रीय आधार मजबूत कर वह अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनावों में जोरदार ताल ठोकेगी। पर तमाम वामपंथी दलों में एकजुट होकर उनकी इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

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ये नतीजे राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों के लिए भी असहज कर देने वाला है। उनकी पार्टी को भी कोई सीट मिलती नहीं दिख रही है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि इन नतीजों का असर केंद्रीय राजनीति में फेरबदल के रूप में दिखाई दे सकता है।

एग्जिट पोल के मुताबिक, सत्ताधारी कंजर्वेटिव को करीब दस पॉइंट्स से जीत मिल रही है। यह स्पष्ट होने के बाद ला पेन ने अपने समर्थकों से कहा, “आज शाम हम एक भी क्षेत्र में नहीं जीतेंगे क्योंकि सत्ताधारियों ने एक अप्राकृतिक गठबंधन बनाया और हमें बाहर रखने के लिए और लोगों को क्षेत्र में अपना प्रशासकीय कौशल दिखाने से रोकने के लिए पूरा जोर लगाया।”

सत्ताधारी पार्टी पर ला पेन ने भयंकर अव्यवस्थित मतदान का आरोप लगाया है क्योंकि लगभग दो तिहाई मतदाता वोटिंग से दूर रहे। हालांकि, चुवीन के नतीजों के बाद ला पेन की अपनी छवि को नरम करने की रणनीति पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ला पेन का आधार देश का पारंपरिक दक्षिणपंथी मतदाताओं के बीच रहा है जो उनके प्रवासी विरोधी और यूरोपीय संघ को लेकर सशंकित दिखने का समर्थक माना जाता है।

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हालांकि, इन नतीजों के आधार पर कुछ विश्लेषक ला पेन को अगले साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में उसे पूरी तरह खारिज करने को उचित नहीं मानते। फ्रांस के 13 क्षेत्रों में चुनावों के बाद आए एग्जिट पोल में सत्ताधारी उदार दक्षिणपंथियों या उदार वामपंथियों की जीत का अनुमान लगाया गया। साल 2015 में हुए क्षेत्रीय चुनावों के बाद से ही माक्रों की पार्टी अस्तित्तव में आई थी।

खराब चुनावी नजीते इस बीत को ओर संकेत करते है कि कैसे माक्रों की पार्टी स्थानीय स्तर पर अपना आधार बनाने में विफल रही है। और माक्रों जिस लहर के साथ चुनाव जीतकर राष्ट्रपति बने थे, वह सिर्फ राष्ट्रपति पद के लिए ही थी। इन नतीजों ने अगले साल माक्रों के दोबारा राष्ट्रपति बनने के रास्ते भी तंग कर दिया है। उदार दक्षिणपंथियों ने वापसी की है, जो एक त्रिकोणीय मुकाबले का संकेत देता है।

रूढ़िवादी नेता जेवियर बरट्रैंड की इन चुनावों के बाद माक्रों के खिलाफ दावेदारी और मजबूत हुई है। उत्तरी क्षेत्रों में उनकी पार्टी ने आरामदायक जीत हासिल की है। खुद को बरट्रांड ने ऐसे फ्रांसीसियों के रखवाले के तौर पर पेश किया है, जो गुजारा भी नहीं कर पा रहे हैं। साथ ही, उन्होंने अति दक्षिणपंथ के खिलाफ भी खुद को सबसे मजबूत विरोधी बताया है।

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बरट्रांड ने चुनाव की शाम अपने समर्थकों से कहा, “अति दक्षिणपंथी को उसके रास्ते पर आगे बढ़ने से रोक दिया गया है। और हमने उसे बहुत तेजी से पीछे धकेल दिया है। यह नतीजा मुझे राष्ट्रीय स्तर पर मतदाताओं से वोट मांगने की ताकत देता है।”

एक दूसरी नेता वैलरी पेक्रेसे, जो ग्रेटर पेरिस क्षेत्र से दोबारा जीतकर आई हैं; को अब तक 2022 में एक संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जाता है। उन्होंने रविवार को देश के दक्षिणपंथियों की तारीफ की। विश्लेषकों ने इसे पेक्रेसे का बरट्रांड का ही समर्थन करने का संकेत माना है।

खबरों के मुताबिक, सिर्फ 35 प्रतिशत लोगों ने इन चुनावों में वोट दिया था। हालांकि, देश की क्षेत्रीय सरकारों के प्रति लोगों का झुकाव कम ही रहता है। ये सरकारें आर्थिक विकास, परिवहन और हाई स्कूलों के लिए जिम्मेदारहैं। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, पेरिस में रहने वाले ज्याँ-जाक नाम के एक शख्स ने बताया, “जो भी हो, मेरी आज वोट देने का कोई इरादा नहीं है क्योंकि नेताओं पर मेरा भरोसा उठ चुका है।”


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